एक बार एक शराबी, शराब पी कर एक मंदिर के बाहर जाता है और पुजारी से बहस करने लगता है।
शराबी: इस दुनिया में मैं सबसे बड़ा।
पुजारी: भाई साहब आप कैसे बड़े? आपसे बड़ा तो भगवान् है।
शराबी: भगवान् बड़ा तो मंदिर में क्यों पड़ा?
पुजारी: अच्छा मंदिर बड़ा।
शराबी: मंदिर बड़ा तो धरती पे क्यों पड़ा?
पुजारी: अच्छा धरती बड़ी।
शराबी: धरती बड़ी तो शेषनाग क फन पर क्यों पड़ी?
पुजारी: अच्छा शेषनाग बड़े।
शराबी: शेषनाग बड़े तो शिवजी के गले में क्यों पड़े?
पुजारी: अच्छा शिवजी बड़े।
शराबी: अच्छा शिवजी बड़े तो पर्वत पर क्यों पड़े?
पुजारी: अच्छा पर्वत बड़ा।
शराबी: पर्वत बड़ा तो हनुमान जी के हाथ पर क्यों पड़ा?
पुजारी: अच्छा हनुमान जी बड़े।
शराबी: हनुमान जी बड़े तो राम जी चरणों में क्यों पड़े?
पुजारी: अच्छा राम जी बड़े।
शराबी: राम जी बड़े तो सीता जी के पीछे क्यों पड़े?
पुजारी: अच्छा तो सीता जी बड़ी।
शराबी: सीता जी बड़ी तो अशोक वाटिका में क्यों पड़ी?
पुजारी: अरे भाई आप ही बताइए कौन बड़ा?
शराबी: वो सबसे बड़ा जो दो बोतल पी कर भी सीधा खडा।
एक लड़की जब रोज़ अपने कॉलेज से वापस आती तो एक लड़के को रोज़ अपने घर के बाहर खडा हुआ देखती।
ऐसा रोज़ होता था, और एक साल बीत गया, वह लड़का रोज़ उसे अपने घर के सामने खडा नज़र आता।
वो कुछ नहीं कहता था और बस कभी आगे पीछे और कभी अपने मोबाइल फ़ोन को देखता रहता।
वक्त के गुजरने की साथ लड़की को विश्वास हो चला था की लड़का उसे चाहता है।
एक दिन लड़की ने हिम्मत कर के उसके पास जाकर पूछ लिया,"तुम रोज़ मेरे घर के बाहर क्यों खड़े रहते हो?"
लड़का घबरा कर, "माफ़ करना बहन, वो क्या है की तुम्हारे वाई-फाई (Wi-Fi) पर पासवर्ड नहीं लगा हुआ है, तो मैं तो वो इस्तेमाल करने आता हूँ।"
प्रधानमंत्री जी,
सबसे पहले तो मैं यह स्पष्ट कर दूं कि मैं ना आज़म खान की भैंस हूँ और ना लालू यादव की। ना मैं कभी रामपुर गयी ना पटना। मेरा उनकी भैंसों से दूर-दूर तक कोई नाता नहीं है। यह सब मैं इसलिये बता रही हूँ कि कहीं आप मुझे विरोधी पक्ष की भैंस ना समझे लें। मैं तो भारत के करोड़ों इंसानों की तरह आपकी बहुत बड़ी फ़ैन हूँ।जब आपकी सरकार बनी तो जानवरों में सबसे ज़्यादा ख़ुशी हम भैंसों को ही हुई थी। हमें लगा कि 'अच्छे दिन' सबसे पहले हमारे ही आयेंगे लेकिन हुआ एकदम उल्टा। आपके राज में तो हमारी और भी दुर्दशा हो गयी। अब तो जिसे देखो वही गाय की तारीफ़ करने में लगा हुआ है। कोई उसे माता बता रहा है तो कोई बहन। अगर गाय माता है तो हम भी तो आपकी चाची, ताई, मौसी, बुआ कुछ लगती ही होंगी।
हम सब समझती हैं। हम अभागनों का रंग काला है ना, इसीलिये आप इंसान लोग हमेशा हमें ज़लील करते रहते हो और गाय को सिर पे चढ़ाते रहते हो। आप किस-किस तरह से हम भैंसों का अपमान करते हो, उसकी मिसाल देखिये।
आपका काम बिगड़ता है अपनी ग़लती से और टारगेट करते हो हमें कि 'देखो गयी भैंस पानी में'। गाय को क्यों नहीं भेजते पानी में। वो महारानी क्या पानी में गल जायेगी?
आप लोगों में जितने भी लालू लल्लू हैं, उन सबको भी हमेशा हमारे नाम पर ही गाली दी जाती है, 'काला अक्षर भैंस बराबर'। माना कि हम अनपढ़ हैं, लेकिन गाय ने क्या पीएचडी की हुई है?
जब आपमें से कोई किसी की बात नहीं सुनता, तब भी हमेशा यही बोलते हो कि 'भैंस के आगे बीन बजाने से क्या फ़ायदा'। आपसे कोई कह के मर गया था कि हमारे आगे बीन बजाओ? बजा लो अपनी उसी प्यारी गाय के आगे।
अगर आपकी कोई औरत फैलकर बेडौल हो जाये तो उसकी तुलना भी हमेशा हमसे ही करोगे कि 'भैंस की तरह मोटी हो गयी हो'। पतली औरत गाय और मोटी औरत भैंस। वाह जी वाह!
गाली-गलौच करो आप और नाम बदनाम करो हमारा कि 'भैंस पूंछ उठायेगी तो गोबर ही करेगी'। हम गोबर करती हैं तो गाय क्या हलवा करती है?
अपनी चहेती गाय की मिसाल आप सिर्फ़ तब देते हो, जब आपको किसी की तारीफ़ करनी होती है 'वो तो बेचारा गाय की तरह सीधा है, या- अजी, वो तो राम जी की गाय है'। तो गाय तो हो गयी राम जी की और हम हो गए लालू जी के।
वाह रे इंसान! ये हाल तो तब है, जब आप में से ज़्यादातर लोग हम भैंसों का दूध पीकर ही सांड बने घूम रहे हैं। उस दूध का क़र्ज़ चुकाना तो दूर, उल्टे हमें बेइज़्ज़त करते हैं। आपकी चहेती गायों की संख्या तो हमारे मुक़ाबले कुछ भी नहीं हैं। फिर भी, मेजोरिटी में होते हुए भी हमारे साथ ऐसा सलूक हो रहा है।
प्रधानमंत्री जी, आप तो मेजोरिटी के हिमायती हो, फिर हमारे साथ ऐसा अन्याय क्यों होने दे रहे हो?
प्लीज़ कुछ करो।
आपके 'कुछ' करने के इंतज़ार में - आपकी एक तुच्छ प्रशंसक! |
|
|
0 Comments